दोस्तों अक्सर हम जगजीत सिंह को उर्दू ग़ज़लों से जोड़कर देखते हैं. पर कभी कभार जब भी उन्होंने शुद्ध हिंदी के शब्दों से सजे गीतों को अपनी आवाज़ दी है ऐसा लगा जैसे माहौल में एक अलग ही महक फ़ैल गयी है. उनके स्वरों का जादू जब हिंदी गीतों में ढलकर परवान चढा तो सुनने वालों के मुँह से स्वतः निकला - वाह...सुनिए पंडित विनोद शर्मा के बोलों में जगजीत को
प्राण तुम क्यों मौन हो...
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